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हम केशव के अनुयायी हैं

हम केशव के अनुयायी हैं हमने तो बढ़ना सीखा है। लक्ष्य दूर है पथ दुर्गम है किन्तु पहुँचकर ही दम लेंगे। बाधाओं के गिरि शिखिरों पर हमने तो चढ़ना सीखा है|| ख्याति प्रतिष्ठा हमें न भाती केवल माँ की कीर्ति सुहाती। माता के हित प्रतिपल जीवन हमने तो जीना सीखा है।| अंधकार में बन्धु भटकते पंथ बिना व्याकुल दुख सहते। पथ दर्शन दीपक बन तिल-तिल हमने तो जलना सीखा है|| तृषित जनों को जीवन देंगे शस्य-श्यामला भूमि करेंगे। सुरसरि देने हिमगिरि के सम हमने तो गलना सीखा है॥ धरती को सुरभित कर देंगे हे माँ हम मधुऋतु लायेंगे। शूलों में भी सुमनों के सम हमाने तो खिलना सीखा है॥

जवान का निशान है, ये हाथ में मशाल...

जवान का निशान है, ये हाथ में मशाल, मुदित मातृभूमी है, देश है निहाल ||धृ || ज्ञान कि मशाल अंधकार चीर दे, शील का प्रहार अनाचार चीर दे, एकता का घोष आज गगन में उछाल || धर्मवीर देश के मचल-मचल बढे, खिचे तूनीत तीर अब कमान पर चढ़ें, वेधना है लक्ष आज कुटील ओ कराल|| *ज्वार लोक चेतना का अब जवान है*, *देश का विधान और जन महान है*, जाती, पंथ, भाषा भेद हो सभी निढाल || स्वाभिमान देश कार्य नित जवान है, भूमि अंतरिक्ष अपना सब जहान है, मस्त नौजवान बढ़ते झूमते प्रवाल।। मुदित मातृभूमी है, देश है निहाल...

राष्ट्र के लिए जिए, राष्ट्र के लिए मरे...

राष्ट्र के लिए जिए,  राष्ट्र के लिए मरे,  साधना के बन प्रदीप,  अंधकार को हरे || धृ || दीप क्या जो अंधकार, दूर भी न कर सके, शक्ती क्या जो दुष्टता को, चूर भी न कर सके, वह घनावली नही, जो वृष्टी भी न कर सके, वह नही महीपती, जो सृष्टी भी न कर सके, चेतना के सुप्त रूप, वीरता के मौनरूप,  जाग जाग जाग रे, जाग जाग जाग रे ||१|| क्या खिला वसंत, कोकिला मधुर न गा सके, क्या खिले सुमन, की भृंग गंध भी न पा सके, क्या बही नदी, की प्यास भी न जो बुझा सके, क्या चला पथीक, की थाह राह भी न पा सके, यह नहीं शयन समय, युवक समूह जागरे, जाग जाग जाग रे, जाग जाग जाग रे ||२|| वह उदित हुआ है सूर्य, अंधकार कर विदीर्ण, और वह पवन चला, जो बादलोके वक्ष चीर, खिल गये सरोवरोमे, सैकडो कनक कमल, मच गयी तरंग से सुरंग मे चहल पहल, हो गयी निशा विदीर्ण, कर्मवीर जाग रे, जाग जाग जाग रे, जाग जाग जाग रे ||३||

इधर उधर बिखरे सुमनोंसे कि यह गुरुपूजा

इधर उधर बिखरे सुमनोंसे,  कि यह गुरुपूजा ||धृ || यहां खडे है नतमस्तक कर  शिव प्रताप तेजस्वी नरवर  यहां खडे है गोविद गुरुवर  यही है केशव शिवसरजा ||१|| यहां जले दीपक जीवन के, गढ चित्तोड के उन युवतीनके, फुल चढे हैं लाल गुरुके, जिन्होने मृत्यू सुखद समझा ||२|| लाकर समिधा नीज यौवन की आग्याहुती दे सौख्य सपन की  रखी दक्षिणा तन-मन-धन की क्या तू दे सकता दे जा ||३|| साक्षी बन इस होम हवन के मंत्र सिखा उज्वल जीवन के  दीपक बन दिन रात जलन के आजा राष्ट्रपुरुष आ जा ||४||